धर्म

चंदखुरी में है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जननी माता कौशल्या का मंदिर

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर चंदखुरी में भगवान श्रीराम की जननी कौशल्या माता का प्रसिद्ध मंदिर है। छत्तीसगढ़ की पावन भूमि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जननी माता कौशल्या का मंदिर पूरे भारत में एक मात्र और दुर्लभ मंदिर है , साथ ही यह छत्तीसगढ़ राज्य की गौरवपूर्ण अस्मिता भी है। प्राकृतिक सुषमा के अनेक अनुपम दृश्य इस स्थल पर दिखाई देते हैं।

कौशल्या माता मंदिर

चंद्रखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर का जीर्णोद्धार 1973 में किया गया था। पुरातात्विक दृष्टि से इस मंदिर के अवशेष सोमवंशी कालीन आठवीं-नौंवी शती ईस्वीं के माने जाते हैं। यहां स्थित जलसेन तालाब के आगे कुछ दूरी पर प्राचीन शिव मंदिर चंद्रखुरी जो इसके समकालीन स्थित है, पाषण से निर्मित इस शिव मंदिर के भग्नावशेष की कलाकृति है।

इस तालाब में सेतु बनाया गया है। सेतु से जाकर इस मंदिर के प्रांगण में संरक्षित कलाकृतियों से माता कौशल्या का यह मंदिर जलसेन तालाब के मध्य में स्थित है, जहां तक पहुंचा जा सकता है। जलसेन तालाब लगभग 16 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है, इस सुंदर तालाब के चारों और लबालब जलराशि में तैरते हुए कमल पत्र एवं कमल पुष्प की सुंदरता इस जलाशय की सुंदरता को बढ़ाती है।

इस मंदिर की नैसर्गिक सुंदरता एवं रमणीयता और बढ़ जाती है। चंद्रखुरी सैंकड़ों साल तक चंद्रपुरी मानी जाती थी क्यूंकि चंद्रपुरी क अर्थ देवताओं की नगरी होता है। हालाँकि अब चंद्रपुरी से चंद्रखुरी हो गया। दरअसल तालाब के संबंध में कहावत है । यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तालाब था। चूँकि इसके चारों ओर 126 तालाब होने की जनश्रुति मिलती है। किंतु अभी इस क्षेत्र में 20-26 तालाब ही बचे हैं ।

पौराणिक कथाएं

रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों दक्षिणापथ भी कहलाता था। यह रामवनगमन पथ के अंतर्गत है इस कारण श्रीरामचंद्र जी के यहां वनवास काल में आने की जनश्रुति मिलती है। उनकी माता की जन्मस्थली होने के कारण उनका इस क्षेत्र में आगमन ननिहाल होने की पुष्टि करता है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्यापति युवराज दशरथ के अभिषेक के अवसर पर कोसल नरेश भानुमंत को अयोध्या आमंत्रित किया गया था।

इसी अवसर पर युवराज द्वारा राजकुमारी भानुमति जो अपने पिता के साथ अयोध्या गयी थी, उनकी सुंदरता से मुग्ध होकर युवराज दशरथ ने भानुमंत की पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा, तभी कालांतर में युवराज दशरथ एवं कोसल की राजकन्या भानुमति का वैवाहिक संबंध हुआ। कोसल की राजकन्या भानुमति को विवाह उपरांत कोसल राजदूहिता होने के कारण कौशल्या कहा जाने लगा। रानी कौशल्या को कोख से प्रभु राम का जन्म हुआ था।

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Jyoti Kumari

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