कश्मीर में एक ऐसा गांव भी है, जहां दहेज लेना और देना प्रतिबंधित है. इस गांव का नाम है बाबा वाइल. यह गांव सेंट्रल कश्मीर के गांदरबल जिले में है. श्रीनगर से 35 किलोमीटर दूर इस गांव में पिछले 17 साल से शादियां बेहद सादगी के साथ की जा रही हैं.

कश्मीर में एक ऐसा गांव भी है, जहां दहेज लेना और देना प्रतिबंधित है. इस गांव का नाम है बाबा वाइल. यह गांव सेंट्रल कश्मीर के गांदरबल जिले में है. श्रीनगर से 35 किलोमीटर दूर इस गांव में पिछले 17 साल से शादियां बेहद सादगी के साथ की जा रही हैं. 1000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में करीब 200 घर हैं.
करीब 6 महीने पहले यहां रहने वाले नईम अहमद शाह और उनके भाई की शादी हुई है. इस शादी में कुल 10 हजार रुपये से भी कम का खर्च आया है. 28 वर्षीय नईम कहते हैं, हमारे गांव में दहेज पूरी तरह से प्रतिबंधित है. गांव के 100 परिवारों ने एक दस्तावेज पर बाकायदा दस्तखत करके यह प्रण लिया कि न तो दहेज देंगे और न ही दहेज लेंगे.
अपनी शादी के बारे में बताते हुए नईम कहते हैं, मैंने दुल्हन के मेहर के तौर पर 2600 रुपये दिए थे और 1 हजार रुपये निकाह कराने वाले इमाम को दिए थे. भाई की शादी भी ऐसे ही हुई थी. शादी में कुल 10 हजार रुपये से भी कम का खर्च आया था.
नियम तोड़ने पर नमाज पढ़ने पर भी पाबंदी
नईम कहते हैं, हमारा गांव एक परिवार की तरह रहता है. यूं तो दहेज न लेने और शादियों को सादगी से करने का रिवाज पुराना है, लेकिन आधिकारिकतौर पर इस संकल्प की शुरुआत 2018 में हुई. जब गांव के बुजुर्गों ने मिलकर एक दस्तावेज पर दस्तखत किए. दस्तावेज के मुताबिक, अगर कोई परिवार इस नियम को तोड़ता है तो उसके परिवार का बहिष्कार कर दिया जाता. उन्हें स्थानीय मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं दी जाती और मातम में भी शरीक नहीं होने दिया जाता.
नईम कहते हैं, यहां के 7 से 8 फीसदी लोगों ने गांव के बाहर भी शादी की है, लेकिन उन्होंने भी दहेज न लेने के नियम को नहीं तोड़ा. 2021 में भी करीब 16 शादियां हुईं वो भी बेहद सादगी के साथ.
गांववालों का कहना है, यहां दहेज न लेने की परम्परा करीब 40 सालों से चली आ रही है.
दोनों तरफ से गोल्ड भी प्रतिबंधित रहता है
गांव में नमाज पढ़ाने वाले 60 वर्षीय इमाम बशीर अहमद का कहना है, यहां होने वाली शादियों में दोनों तरफ से सोने की चीजें भी प्रतिबंधित रहती हैं. शादियों में 4 से 5 व्यंजन ही बनाए जाते हैं. पहले शादियों में दूल्हे की तरफ से करीब 15 से 20 लोग जाते थे, लेकिन यह संख्या घटकर 4 से 5 रह गई है.
युवाओं के कारण गांव में आया बदलाव
बशीर कहते हैं, यह सब युवाओं के कारण ही संभव हो पाया है. हमें उन पर गर्व है. पिछले 17 से 18 सालों में एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया जब किसी ने दहेज न लेने का नियम तोड़ा हो. गांव में सभी लोग खुश हैं. इसी गांव के रहने वाले 30 वर्षीय सईद जाविद कहते हैं, मेरी शादी 2015 में हुई थी. ससुराल की तरफ हुआ शादी का सारा खर्च मैंने उठाया था. दहेज के खिलाफ सख्ती के कारण यहां बदलाव आ रहा है. अब शादियों में पैसे की बर्बादी नहीं होती. सैकड़ों बहनों की शादियों में दहेज की बाधा नहीं है.